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हिन्दी कवि निराला ने छन्दमुक्ति की बात उठाई थी , जिसे बहुत से लोगों ने छन्दहीनता
समझ लिया है । मुक्त छन्द का अर्थ छन्दहीनता नहीं है । पर मुक्त छन्द की आड़ में अनेक
कवि छन्द और लय को छोड़ कर ऐसे स्वच्छन्द हुए कि कविता के सभी लक्षणों को छोड़
कर केवल गद्य लिखने लगे । आज हर कोई कवि है । जिसे कविता के इतिहास , परम्परा और
तकनीक ( अर्थात काव्य शिल्प ) का और हिन्दी भाषा का अल्प ज्ञान नहीं , वह भी कविता
लिखने का दावा कर रहा है , कविता के पुरस्कार हथिया रहा है । वह मुक्त छन्द को छन्दहीन
समझता हे और कोरा गद्य लिख कर उसे मुक्त छन्द की कविता बताता है ।
अनेक कवियों ने छन्द , लय के स्थान पर प़तीक , विम्ब , फैन्टेसी और ग़ैर मिथकीय
मिथकों के साथ पहेली को कविता का सर्वस्व समझ लिया है । ये उपकरण पहले की कविता
में भी थे । इन पर गद्यकवियों का एकाधिकार और विशेषाधिकार नहीं है ।अभिव्यंजना के
नवीन उपकरणों से कविता का सौन्दर्य बढ़ता है , पर इन पर अत्यधिक ंआग़ह से ये उपकरण
तो बचे रहते हैं पर कविता पीछे छूट जाती है । आज अनेक लोग फैन्टेसी , अटपटे विम्ब ,
और पहेलियाँ कविता के नाम पर लिख रहे हैं । उन की कविता को यदि पाठक न समझ
पाएँ तो वे पाठक को अनपढ़ समझते हैं । ऐसी तथाकथित कविताओं की लोकप्रियता
नगण्य है । पर वे लोकप्रियता पाने के लिए पुरस्कारों , सम्पादकों और विशेषांकों तथा
अभिनन्दन ग़न्थों के प़काशन की ओर दौड़ते हैं ।
मैं यह कहना चाहता हूँ कि अच्छी कविता की बड़ी आवश्यकता है और अच्छी कविता
वही है जो व्यापक पाठकों तक पहुँचे और उन के द्वारा पढ़ी व सराही जाए । उस के पहले
यह आवश्यक है कि कविता सामान्य पाठकों द्वारा समझी जाए , लेकिन यह तभी होगा
जब वह सम्प़ेषण योग्य भाषा में लिखी गई हो । पर अज की कविता के सामने सम्प़ेषणीयता
का संकट है । उसे कवि समझते हैं या उन के मित्र या उन के गुट के आलोचक । सब कवि
जनता की वकालत करते हैं , पर बहुत से कवि कविता ऐसी भाषा में लिखते हैं , जो जनता
के सिर के ऊपर से ग़ुज़र जाती है ।
— सुधेश