पृष्ठ १३ – कविताएँ

कविताएँ                      पृष्ठ १३

माँ- आज भी टहलती है,
रात भर/आंगन में-
चादंनी बन,
रसोई में रची-बसी है माँ-
बघार की गंध के साथ,
जब कभी हो जाता है, जुखाम/तो-
तुलसी की पत्ती और काली मिर्च वाली-
चाय में/माँ का- ममतामय चेहरा-
थिरकने लगता है,
जब कभी भी मैनें डाटां/नन्हे बेटे विनायक
को-
माँ ने- मुझे डाटा था-
क्योंकि माँ/ जब दादी बन जाती है-
तो ममता- अनायास बढ़ जाती है उसकी-
लगता है हर माँ-
देखती है, अपने बेटे को/ जीवन भर-
चदंन की गंध बन-
अगरबत्ती के धुऐं की तरह,
व्याप्त होती है- माँ-
हर दिच्चा मे/हर समय-
मां-सार्वमौम सत्य है,
प्रकृति का/जीवन धड कन का-
बघार की सौंधी महक-
और चदंन गंध सा,
कोमल अहसास है-
माँ।
— भोला नाथ त्यागी
( बिजनौर उ प़ )