पृष्ठ १५ – कविताएँ

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लोकनिद्रा

अरी ओ चिरैया!
ज़रा उषा की अगवानी के गीत तो गाओ.
जनता को जगाना है

अरी ओ कलियो!
ज़रा चटक कर खुशबू बिखेरो न
जनता को जगाना है

अजी ओ सूरज दादा!
जमे हिम खंड पिघला दो अपनी धूप से
जनता को जगाना है

अरी ओ हवाओ!
सहलाओ मत, जोर से हिलाओ, झकझोरो
जनता को जगाना है

अरे ओ बादलो!
उमडो घुमडो गरजो बरसो, बिजली चमकाओ
जनता को जगाना है
अरी ओ धरती!
फट नहीं पड़ना! थोड़ा और धीर धरो!!
जनता जाग रही है!!!
— रिषभ देव शर्मा
( अध्यक्ष , हिन्दी विभाग , उच्च शिक्षा एवम् शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिन्दी प़चार सभा , हैदराबाद , आ प़ )