पृष्ठ १९ – दोहे

दोहे                        पृष्ठ १९

दॆतॆ हैं उपदॆश यॆ, ढ़ॊंगी खद्दर भॆष ॥
नागॊं सॆ फुँफकारतॆ, दहशत में है देश ॥
इतनॆ हुयॆ निलज्ज यॆ,शर्म रही ना शॆष ॥
रॊयॆ इन पर भारती,दहशत में है देश ॥
मस्ती मॆं सब मस्त हैं, घूमॆं दॆश विदॆश ॥
खड़ा आग कॆ ढ़ॆर पे,दहशत में है देश ॥
मानवता है मर चुकी,बची नहीं अवशॆष ॥
ईश्वर ही रक्षा करॆ,दहशत में है देश ॥

–दुर्गेश दुबे प़ेमी
( मुम्बई के उदीयमान कवि )

बल है जिनके पंख में , उनका है आकाश,
भगत सिंह बन जूझते , वे रचते इतिहास।
खुशियाँ हों जब जेब में, हर दिन है इतवार
जब नैना स्वागत करें, हर दिन है त्यौहार ।

–साधे श्याम बन्धु
( यमुना विहार , दिल्ली )

आज़ादी है गुमशुदा, अपह्रत है जनतंत्र
क्या होगा इससे बड़ा, कोई भी षड्यंत्
और न गांवों को करो, यारो ! तुम बदहाल
जड़ सूखी तो देखना, सूखेगी हर डाल ।
घर में खाने को नहीं, फिर भी लेकर लोन
नाचें हाथों में धरे, हम मोबाइल फोन ।
— हरे राम समीप
( फ़रीदाबाद , हरियाणा )