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सम्पादकीय

अच्छी कविता                            पृष्ठ ४

सहज कविता को अच्छी कविता भी कहा जा सकता है । पर अच्छी कविता क्या हैं?
जो सामान्य पाठकों और विशिष्ट पाठकों को अच्छी लगे , वह अच्छी कविता होगी ।
सामान्य पाठक साक्षर , अर्ध शिक्षित और कुछ शिक्षित हो सकते हैं ।उच्च शिक्षित
और अभिजात वर्ग के पाठक विशिष्ट पाठकों में शामिल किये जाएँगे । पाठक सामान्य
हो या विशिष्ट वह किस आधार पर कविता को अच्छी या ख़राब कहेगा ? जिस की
कविता मात्र में रुचि नहीं है , और आज ऐसे बहुत से लोग हैं , जो कविता पढ़ते ही नहीं
वे कैसे कविता को अच्छी या ख़राब बताएँगे? आज अनेक बल्कि बहुत से लोग हैं जो
कविता से दूर हैं , पर वे भी कविता पर टिप्पणी करते हैं ।
जो सामान्य और विशिष्ट पाठक कविता को पढ़ते हैं , उन की रुचि और शिक्षा के
स्तर में अन्तर हो सकता है । अत: रुचि भेद के कारण एक कविता किसी को अच्छी
लगेगी , किसी को नहीं । समझ और बोधशक्ति के अन्तर से कोई एक कविता को
पसन्द करेगा , कोई उसे बकवास बताएगा । तो कविता का अच्छा लगना पाठक
की रुचि , समझ और संवेदनशीलता पर निर्भर करता है ।
कविता को साहित्य और समाज के हाशिये पर डालने के बावजूद वह खूब लिखी
जा रही है । अच्छी कविता भी लिखी जा रही हे और ख़राब कविता भी । ख़राब
कविता को अकविता कहने से काम नहीं चलेगा , क्योंकि हिन्दी में अकविता नाम
से कविता का आन्दोलन कभी चला था । ख़राब कविता को छद्म कविता या कृत्रिम
कविता कहा जा सकता है । कोई उसे कविता ही न माने तो मुझे आपत्ति नहीं होगी ।
विडम्बना यह है कि आज कल ऐसी कविता को उत्तम कविता और आगे बढ़ कर
कालजयी कविता कहने वाले मिल जाएँगे ।
अच्छी कविता को सहज कविता क्यों न कहंूं ? कुछ कुतर्क कर सकते हैं कि सहज
कविता भी ख़राब कविता हो सकती है । हर युग में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो जिसे
अच्छा समझते हैं वही अच्छा होता है , बाक़ी सब ख़राब । आज ऐसे अनेक हैं जो
समझते हैं कि पद्यात्मक और छन्दात्मक कविता के ज़माने लद गये , इस लिए वह
ख़राब कविता या अप्रासंगिक कविता है । कुछ उदार हुए तो कह देंगे कि वर आज
की कविता नहीं है । उन के अनुसार छन्दात्मक कविता यान्त्रिक कविता है , जिस
में ज़बर्दस्ती तुक मिलाई जाती है । शायद वे जानते नहीं या जानना नहीं चाहते कि
अतुकान्त कविता भी छन्दात्मक हो सकती है । उदाहरण के लिए हरिऔध के
महाकाव्य प़िय प़वास के कई स्थल छन्दमय हैं पर अतुकान्त हैं । वैदिक साहित्य
का अधिकांश अतुकान्त है  पर विविध छन्दात्मक है ।
यदि यान्त्रिक अथवा बनावटी कविता की बात की जाए तो कहा जा सकता है कि
आजकल ऐसी कविता अधिक लिखी जा रही है , जिस में असली  नैसर्गिक कविता
के लक्षणों का अभाव है और उस का प़मुख लक्षण है कोरी गद़्यात्मकता ।