साहित्यिक समाचार पृष्ठ २८
अब ‘वंदे मातरम्’ का पंजाबी अनुवाद
स्टार न्यूज़ एजेंसी की संपादक एवं युवा पत्रकार फ़िरदौस ख़ान ने वंदे मातरम का पंजाबी में अनुवाद किया है। वंदे मातरम भारत का राष्ट्रीय गीत है. इसकी रचना बंकिमचंद्र चटर्जी ने की थी। अरबिंदो घोष ने इस गीत का अंग्रेज़ी में और वरिष्ठ साहित्यकार मदनलाल वर्मा क्रांत ने वंदे हिन्दी में अनुवाद किया था। आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने इसका उर्दू में अनुवाद किया। गीत के प्रथम दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बांग्ला में हैं. राष्ट्रकवि रवींद्रनाथ ठाकुर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया था। भारत में पहले अंतरे के साथ इसे सरकारी गीत के रूप में मान्यता मिली है. इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा कर इसकी धुन और गीत की अवधि तक संविधान सभा द्वारा तय की गई है, जो 52 सेकेंड है-।
मातरम का पंजाबी अनुवाद (देवनागरी में)
मां तैनू सलाम
तू भरी है मिठ्ठे पाणी नाल
फल फुल्लां दी महिक सुहाणी नाल
दक्खण दीआं सरद हवावां नाल
मां तैनू सलाम…
तेरीआं रातां चानण भरीआं ने
तेरी रौणक पैलीआं हरीआं ने
तेरा पिआर भिजिआ हासा है
तेरी बोली जिवें पताशा है
तेरी गोद ’च मेरा दिलासा है
तरी पैरीं सुरग दा वासा है
मां तैनू सलाम…
-फ़िरदौस ख़ान
( जय प़काश मानस के सौजन्य से )
१० दिसम्बर २०१३ को फेसबुक में प़काशित ।
सोलह साल तक ‘कभी-कभार’
किसी पत्र-पत्रिका में किसी साहित्यिक स्तम्भ का 16 साल तक निरंतर चलना और वह भी पूरे चाव के साथ पढ़ा जाना, अपने आप में एक इतिहास और अचम्भा जैसा भी है । जी हाँ, कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी जी के ‘कभी-कभार’ स्तंभ को निर्बाध चलते अब सोलह बरस हो गए। हिंदी पत्रकारिता में शायद ही कोई ऐसा स्तम्भ होगा, जिसकी आयु 16 साल की होगी ।मै खुद पिछले 10 साल ने उसका नियमित पाठक रहा हूँ कभी सहमत और कभी असहमत होते हुए भी। एक अच्छी बात यह भी कि ‘कभी-कभार’ किताब के रूप में भी उपलब्ध है । वाजपेयी जी बताते हैं- ”मैंने मुनासिब बेशर्मी से ‘कभी-कभार’ की टिप्पणियों को पुस्तकाकार संकलित किया है। वाणी प्रकाशन, दिल्ली से ‘कभी-कभार’, ‘कुछ खोजते हुए’, ‘यहां से वहां’ और ‘पुनर्भव’ सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर से प्रकाशित हैं। कई मित्रों की यह बजा शिकायत थी कि स्तंभ की कतरनें सहेज कर रखना कठिन होता है।” उनको और जनसत्ता को दिल से बधाई..।
— जय प़काश मानस