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मिली भगत से हो रहे कैसे कैसे काम
अँधा है कानून जब, तुम्ही करो कुछ राम ।
— राजेश राज
( गोरखपुर उ प़ )
कल की कह प्रिय कल गए,वेकल सही न जाए,
मैं कल कल में पड़ गई, अब कल कैसे आए ।
निबल देश में प्रजाजन,कभी न मिलता मान,
ज्यों गेहूँ के खेत में, बथुआ का अपमान ।
गले-गले मिलिए अटल क्या हिन्दू इस्लाम,
अब हम सब ही एक हैं, भारतीय है नाम ।
— अटल बिहारी लाल अटल
( फ़र्रुख़ाबाद के दिवंगत कवि )
रजनी कान्त शुक्ल के सौजन्य से ।
क्यों गुलाब तू ऐंठता, कठिन प्रेम की राह,
पल पल छलनी हो रही, पंखुड़ियों की चाह।
कुर्सी ऐंठे भाग्य पर, रही काठ की काठ,
एक काठ तरनी बनी, एक घाट की पाट।
राधे श्याम बन्धु
संपादक ‘समग्र चेतना’
दिल्ली –
धूल, शायरी, घास की, हालत एक समान|
कहाँ जमे, कितनी जमे, यह जाने भगवान||
–सूर्यकुमार पांडेय
( लखनऊ उ प़ )
क्या भोगूँ क्या त्याग दूं करता रहा विचार
पाप- पुण्य के फेर में ,उम्र गयी बेकार
. – दीक्षित दनकौरी
( दिल्ली )