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हम जियालों की क़द्र करते हैं
बा-कमालों की क़द्र करते हैं ।
दर्दमंदों पे जां लुटाते हैं
दिल के छालों की क़द्र करते हैं ।
जो उतरते हैं रूह से सीधे
उन ख़यालों की क़द्र करते हैं ।
आप खुल कर उठाइए हम पे
हम सवालों की क़द्र करते हैं ।
जो शबे -तार को उजाले दें
उन मशालों की क़द्र करते हैं ।
हम रईसों को दिल नहीं देते
ग़म के पालों की क़द्र करते हैं ।
हैं हमारे ख़ुदा जो ग़ुरबा के
आहो-नालों की क़द्र करते हैं!
— -सुरेश स्वप्निल
हम से मिलिये खिले गुलाब से मिलिये
रंग-उमंग भरे हसीन ख़्वाब से मिलिये।
है बेहिसाब मुहबत हमारी बाँहों में
हम से मिलिये उसी हिसाब से मिलिये।
बूढ़े पिंजर हैं उधर, सब ढीले-ढाले
आइये आइये इधर, शबाब से मिलिये।
उड़ती उड़ती सुनी पे मत जाइये,
जिन पे बीती है उन जनाब से मिलिए।
बुझेगी प्यास न यह मै के पैमानों से
आइये आइये, नदी शराब से मिलिये।
पूछ रहा था जिसे कई सदियों से जहाँ
उस सवाल के दो-टूक जवाब से मिलिये।
किसी खुदा का नहीं, आसमाँ तुम्हारा है
उठो जमीं से उठो, आफताब से मिलिये।
हमारा हुस्न औ’ नूर, है तूर का जलवा
हम से मिलिये मगर आदाब से मिलिये।
फ़लक पे छाये खुदा का नहीं दावर कायल
ज़मीन से उभरे खुदाओं के इन्तखाब से मिलिये।
— बल देव राज दावर
( दिल्ली )