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इतना भी मजबूर न कर
मुझको मुझ से दूर न कर ।
प्यार का चाँद निकलने दे
दुनियाँ को बेनूर न कर ।
दिल ठहरा मासूम बहुत
वार अभी भरपूर न कर ।ग
दोहराकर मेरी कमियाँ
तू मुझ को रंजूर न कर ।
एक नज़र में दिल लेकर
मुझको यों मशहूर न कर ।
— बनवारी लाल गौड़
( ग़ाज़ियाबाद उ प़ )
या तो कुबूल कर, मेरी कमजोरियों के साथ
या छोड दे मुझे, मेरी तनहाईयों के साथ ।
लाजिम नही कि हर कोई हो कामयाब ही
जीना भी सीख लीजिए नाकामियों के साथ ।
अच्छा किया जो तुमने गुनहगार कह दिया
मशहूर हो गया हूँ मैं, बदनामियों के साथ ।
शामिल हूँ तेरे गम में, बहुत शर्मसार भी
लाचार हूँ, खडा हूँ तमाशाइयों के साथ ।
जद्दो-जहद में जोश था, जीने का लुत्फ था
मुश्किल में पड गया हूँ मैं, आसानियों के साथ ।
-दीक्षित दनकौरी
( सन्तोष सिंह के सौजन्य से )