पृष्ठ २७ — …. सविता नायक की रिपोर्ट

प्रश्न: क्या बिना शोध के (उनकी रचनाओं जैसा) गहन या उच्च कोटि का लेखन संभव है?
“यह आवश्यक नहीं कि ‘क्रिएटिव राईटर’ विद्वान् भी हो, ऐसा रचनाकार संवेदना के बल पर लिखता हैl विद्वान् पूर्णतः शोध करता है लेकिन ‘क्रिएटिव राईटर’ ऐसा नहीं करताl रचनात्मकता के साथ ही रचना में पाठक की रूचि बनाए रखने के लिए रचना का रोचक होना भी आवश्यक हैऔर यह लेखक की लेखन क्षमता पर निर्भर करता हैऔर इसीलिए ऐसा होता है कि कभी आप पुस्तक को पकड़ते हैं और कभी पुस्तक आपको पकड़ लेती हैl मेरी कोई अपनी आध्यात्मिक अनुभूति नहीं है और न ही कोई विशेष शोध किया है, हाँ अपनी पसंद के विषय पर लिखते वक़्त उस विषय से सम्बंधित जो भी सामग्री सामने आई या मिली उसको अवश्य पढ़ा और तत्पश्चात उसके बारे में सोचा, जागते-सोते हुए भी सोचा और मंथन होता रहा और उसी मंथन ने सब करवायाl”
प्रश्न: व्यंग्य लेखन और उपन्यास लेखन में क्या अंतर लगा?
“लेखक या रचनाकार को चाहिए कि सर्वप्रथम अपने व्यक्तित्व को समझे, अपनी रूचि के क्षेत्र को जाने और अपनी रूचि अनुसार ही विधा को चुनेl अपनी रूचि की यह विधा कविता भी हो सकती है, और व्यंग्य लेखन या फिर उपन्यास लेखन इत्यादि भीl”
“व्यंग्य लिखकर ‘विषवमन’ करने के पश्चात संतोष होता हैl व्यंग्य क्षत्रिय विधा की तरह आक्रमक हैl व्यंग्य वह है जिससे हंसी नहीं अपितु रातों को नींद न आयेl शरद, जोशी, परसाई या मैं, सब अपने-अपने ढंग से व्यंग्य लिखते हैंl घटना, सरकार, नीति इत्यादि किसी पर भी गुस्सा हो सकता है और व्यंग्य लिखा जाता हैl”व्यंग्य हो या नाटक या उपन्यास, लिखते वक़्त घटना, चरित्र और शब्दों के प्रति सदैव आकर्षण रहा हैl हमेशा चाहा कि लिखते वक़्त शब्द का सदुपयोग हो, दुरूपयोग नहीं इसलिए अगर कहीं शब्द का दुरूपयोग होते देखा तो वो दिल को चीरने जैसा प्रतीत हुआl”
प्रश्न: आधुनिक जीवन के बारे में लिखते हुए पौराणिक काव्यों इत्यादि के बारे में सोचते हुए लिखना कितना सही है?
“प्रकृति के नियम जैसे पहले थे, वैसे ही आज भी हैंl पहले जो अहिल्या इत्यादि के रूप में दिखा, वो आज किसी और रूप में दिख जाता हैl ऐसे में यह प्रश्न भी सामने आया था कि लिखते रहने से समाज में कोई विशेष सुधार तो हुआ नहीं? लेखक लिखता है, वह दर्द की दवा नहीं बेच रहाl साहित्यकार लिखता है, प्रसारित करता है, जिसको जब चाहिए वह तब ग्रहण करता हैl”
प्रश्न: भक्ति और लेखन कैसे सम्बंधित या अलग हैं?
“लेखक का गुण है ‘परकाया प्रवेश’ करना यानि कि पात्रों को जीना और उनके जैसा महसूस करते हुए लिखनाl लेखक ऐसा कर पाता है और इसी कारणवश श्री राम के भक्त होने पर भी वाल्मीकि जी सीता या राम के विषय में निष्पक्ष भाव से लिख पाए जोकि अगर केवल भक्त होने के नाते लिखते तो वैसा नहीं लिख पातेl”
— प्रवासी दुनिया में प़काशित
–(  पवन गोस्वामी के सौजन्य से प़ाप्त )