पृष्ठ २५ — ( ” स्वामी विवेकानन्द की स्मृति में ” , “दूर हटाओ अंग़ेज़ी “)

६ – – कुछ सामयिक भी                                 २५
                         स्वामी विवेकानन्द की स्मृति में 
4 जुलाई 1902 को नियति ने स्वामी विवेकानंद जैसी अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति हम से छीन ली थी. उनकी पुण्य स्मृति में उनके जीवन का एक रोचक प्रसंग यहाँ दे रहा हूँ ।
स्वामी विवेकानंद 1893 में शिकागो की धर्मसंसद में गए तो प्रारंभ में बहुत कठिनाइयों का सामना किया. उनका Delegation Pass भी गुम हो गया. कहीं रहने का भी ठौर ठिकाना नहीं बन रहा था. वे कुछ परेशान से एक सड़क के किनारे फुटपाथ पर बैठ गए. वहीं से स्कूल के कुछ विद्यार्थी यूनीफॉर्म पहने स्कूल से लौट रहे थे. उन्होंने देखा फुटपाथ पर एक ऊंचे कद वाला व्यक्ति कतिपय मैली सी धोती कुर्ते और पगड़ी में बैठा है. वे सब उस पर हँसने लगे. स्वामी विवेकानंद ने उनसे पूछा – ‘आप सब मुझ पर हंस क्यों रहे हैं?’ विद्यार्थियों ने इशारे से ही आपादमस्तक उनकी शख्सियत की ओर इशारा किया । तब स्वामी विवेकानंद बहुत प्यार से उन बच्चों से बोले:
In India personalities are not made by barbers and cobblers! :) :) :)
— प़ेम चन्द सहजवाला
( हिन्दू कालेज , मोरिस नगर , दिल्ली )
मूल स़ोत  Vivekanand , a biography , by  Swami Nikhilanand .
                  दूर हटाओ अंग़ेज़ी 
    जापान में दर्शको का एक वर्ग है जिसे अंग्रेजी शब्दों के ज्यादा इस्तेमाल पर बेहद आपत्ति है । वे ‘राष्ट्रीय प्रसारण’ से बेहद ख़फ़ा है । उन्होंने अंग्रेजी शब्दों का ज्यादा इस्तेमाल करने पर प्रसारकों पर मुक़दमा दर्ज करवा दिया है । एक दर्शक हैं 71 साल के होजी तकाअशी । उन्होंने राष्ट्रीय प्रसारण चैनल ‘एनएचके’ पर मानसिक रूप से परेशान करने के लिए 14 लाख येन की राशि की भरपाई की मांग की है । तकाअशी को इस बात की ज्यादा चिंता है कि जापान अमरीका बनता जा रहा है ।
— श्री जय प़काश मानस
( राय पुर , छत्तीसगढ़ )