५ – प़तिक़िया पृष्ठ २४
सुधेश जी की पत्रिका सहज कविता के पुराने अंक देख रहा था कल । अपने संपादकीय में सहज कविता के बाबत उन्होंने अकबर इलाहाबादी व मीर के शेर कोट किए हैं। ये किसे नहीं माकूल लगेंगे । आप भी गौर फरमाइए-
इश्क को दिल में जगह दे अकबर
इल्म से शायरी नहीं होती ।( अकबर इलाहाबादी )
नाजकी उनके लब की क्या कहिए,
पंखड़ी इक गुलाब की सी है । (मीर )
— शैलेन्द़ ( कोलकाता )