४ — आलोचना खण्ड
छोटे बहरों में बड़ी अभिव्यक्ति
सलीम ख़ां फ़रीद की ग़ज़लों से वे सभी परिचित हैं जो हिंदी की मुख्यधारा की साहित्यिक पत्रिकाओं का नियमित वाचन करते रहे हैं । वे वर्षों से हिंदी ग़ज़लों से अपनी पहचान बना चुके हैं । यूं तो मेरा उनसे वर्षों पुराना पत्राचार रहा है किन्तु पिछले दिनों जब उनका पहला ग़ज़ल संग्रह ‘एक सवाये सुर को साधो !’ उनके एक पत्र के साथ आया तो सबसे पहले तो यह लगा कि उनकी यह किताब बहुत पहले आ जानी चाहिए थी, ख़ैर… । फ़रीद हिंदी में सबसे छोटे बहरों में बड़ी अभिव्यक्ति के रचयिता हैं –
चिड़ियों ने मिल-जुल कर फिर से
बाजों को सरदार किया है ।
ख़ाली थैला ले घर लौटे
हमने भी बाज़ार किया है ।
फ़रीद उन सरोकारों के ग़ज़लगो हैं जिनकी अपेक्षा आम जन को आज़ादी के बाद से रही है । उनके यहाँ असमानता, शोषण, दमन के ख़िलाफ़ पुरजो़र आवाज़ है । आम आदमी यहाँ अपने संत्रासों से निज़ात पाने का रास्ता और विश्वास प्राप्त कर सकते हैं । यही फ़रीद की सफलता और पहचान है । इस्तेमाले गये/फिर निकाले गये । इक अंधेरा उगा/सो उजाले गए । कहन इतना ठोस और बैलौस है कि सीधे बौद्धिक मन में मंथन होने लगता है । कह सकते हैं ये ग़ज़लें सिर्फ़ सिर्फ़ मानसिक आल्हाद की नहीं, वैचारिक तंतुओं को झकझोकरने की भूमिका निभाती हैं । फ़रीद की भाषा आमजन की भाषा है, पर ऐसा भी नहीं कि वहाँ बौद्धिक प्रतीक, बिंब या वक्रोक्ति ना हो । बुजुर्ग शायर निदा फाजली कहते हैं – ‘फ़रीद की एक दृष्टि से हिंदी के हैं न उर्दू के है, वो उस भाषा के कवि/शाइर है, जिसे गांधीजी हिंदुस्तानी कहते थे और जिसे भारत की तीन चौंथाई आबादी बोलती है, सुनती है और अपने दुख-सुख को अभिव्यक्त करती है ।‘’ एक किताब में मैंने इससे पहले चार-चार भूमिकाएं कभी नहीं पढ़ीं । यहाँ फाजली साहब के अलावा डॉ.कुँअर बेचैन, विज्ञानव्रत जैसे माहिर ग़ज़लकारों के अलावा सीए.सुमेरसिंह शेखावत से भी टिप्पणी दी गई हैं । शायद फ़रीद अब जिस मुक़ाम पर पहुंच रहे हैं वहाँ उन्हें कई समकालीनों से संस्तुति की अधिक ज़रूरत नहीं होनी चाहिए । बहरहाल 104 पृष्ठों में समायी यह किताब मात्र 100 रुपये की है । बोधि प्रकाशन, जयपुर ने इसे छापा है, पर एक चीज़ मेरे समझ में नहीं आयी, वे तो लगभग इतने पृष्ठों की किताब मात्र 10 रूपये में उपलब्ध कराते चल रहे हैं फिर इस ख़ास किताब का दाम 100 रुपये क्यों ? विश्वास के ग़ज़ल जैसी मारक और सरोकारी विधा की इस किताब का सभी स्वागत करेंगे औऱ फ़रीद का भी । हाँ उन्हें हर बह़र में ख़ुद को अभी सिद्ध करना बाक़ी
कृति- एक सवाये सुर को साधो !
ग़ज़लकार – सलीम खाँ फ़रीद
मूल्य – 100 रुपये
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर
समीक्षक डा जय प़काश मानस
रायपुर ( छत्तीसगढ़ )