घ — मुक्तक
कुछ मुक्तक
हम भी उन के मुरीद हो जाएँ
गर ये नेता शहीद हो जाएँ
लाश पर राजनीति कर के
दर्द जन का न हम को समझाएँ ।
— वेद प़काश वटुक ( मेरठ )
भावनाओं का दूध डाला है
प्रेम की आँच पर उबाला है
स्वाद प्यारा है चाय का लेकिन,
उससे भी प्यारा चाय-वाला है ।
– जितेन्द्र ‘जौहर
( रेणु सागर , ज़िला सोनभद्र उ प़ )
पहाड़ों पर प़लय की बाढ़ से आँसू
घरों में मन्दिरों में भी बहे आँसू
देवताओं की धरा में मृत्यु नर्त्तन
दु:ख की नदी बन कर के बहे आँसू ।
किस पाप का परिणाम भोगा ?
जैसा आदि वैसा अन्त होगा
प़गति की दौड़ में स्वार्थ ने
पहाड़ों की तली को खोदा ।
— सुधेश