तुम्हारे लिए
तुम्हारे लिए ,
केवल तुम्हारे लिए
हम यहाँ आए थे
केवल तुम्हारे लिए !
सुबह से शाम तक
यात्रा के सब पड़ाव
पड़े थे दुख ही के गाँव
साथी गर कोई था
तो वे थे काँटे,
या छालो भरे पाँव,
फिर भी हमने
गीत यहाँ गाए थे
तुम्हारे लिए ,
केवल तुम्हारे लिए ।
फलती थी सिर्फ विष बेल ही,
भूमि थी
ऐसी बंजर कठोर,
बोकर मगर कालजयी
सपने यहाँ साँझ भोर
कमल वन हमने उगाए थे ।
तुम्हारे लिए ,
केवल तुम्हारे लिए ।
अंचल में बंधे थे
करील मन
रज के रिश्ते हजार
होंठों पर प्यास के मरुस्थल थे
कंधों पर
निर्मम जिद्दी पहाड़
फिर भी हम अमृत ले आए थे
तुम्हारे लिए ,
केवल तुम्हारे लिए ।
जब भी हम आए हैं,
बेचे गए
केवल मरण के हाथ,
जागे तो दिये गए
निर्धनतम आँसू को
दिवस रात
फिर भी हम
हर दिन यहाँ धाये थे
तुम्हारे लिए ,
केवल तुम्हारे लिए ।
हम यहाँ आए थे
केवल तुम्हारे लिए! ।
— नीरज
मैरिज रोड , अलीगढ़ ( उ प़ )
( हिन्दी पू नामक साइट से साभार )