मौसमों का क़म ओर मानव
गर्मी बहुत है
पर प्यार की गर्मी नहीं है
रिश्ते सारे विश्व से हैं
उन की डोर में अपने नहीं क्यों
रिश्ते मात्र औपचारिक हुए ।
समय के चक़ में
बरसात भी आई झमाझम
उस के साथ अश्रु वर्षा
आपदा की बाढ़ भी
मन की किश्तियों को
बहा ले जाएगी अतल में ।
धरती खिसक कर
सूर्य से कुछ दूर होती
सर्दी शुरु हुई
वक़्त पर कभी बेवक्त
हड्डियों को कँपाती
तब गर्मी याद आई
बिछुड़ी प़ेमिका सी ।
ग़ीष्म वर्षा शरद के बाद
शिशिर का क़म
न जाने कब से चला
कब तक चलेगा ।
प़कृति के मंच का
पात्र है मानव
हंसेगा कभी रोयेगा
जगत नाटक कब तक चलेगा
शायद समय के अन्त तक ।
मानसर
वक के साथ हंस
दिखा मानसर में
मैं ने वक से पूछा
” यह कैसे हुआ “
वक ने बका
“यह प़जातन्त्र है “
हंस ने हंस कर कहा
” यह मिली जुली सरकार है ” ।