ग –कविताएँ पृष्ठ १५
मेरे अस्सी वर्ष के होने पर मित्रों की अनेक मंगलकामनाएं मिलीं ,
जिन में श्री रजनी कान्त शुक्ल की निम्न लिखित काव्यात्मक मंगल कामना
भी सम्मिलित है । सम्पादक
एक वर्ष और गया,गाँठ से,
बताता है,समय का पहिया-
जिसे कि तुम सुनना मत,
पुर्नमूल्यांकन कर गुजरे समय का
पुन., लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में,
सउत्साह होना रत,
बीता सो रीत गया,आएगा वो लाएगा,
रस की हर बूँद आप उसकी पी जाइए,
वर्तमान का हर एक क्षण है मादक सुरा सा,
जीवन की प्यास इस उल्लास से बुझाइए,
(जन्मदिन की अनंत शुभ कामनाएं)
— रंजनी कान्त शुक्ल
देश का भविष्य
ये बच्चा भी अपनी मां का राजदुलारा
पर गलियों में फिरता मारा-मारा ।
बिन कुछ खाए निकल पड़ा है सुबह-सुबह ही
कड़ी दुपहरी छान रहा है कचरा सारा ।
फटे-चीथड़े से तन ढांके, कांधे पे थैला लटकाये
भूखा ही सो जाएगा ये रात को लौटा हारा ।
सुनता गाली, खाता थप्पड़, सहता घूंसे
कुछ सिक्कों की खातिर बिकता बचपन प्यारा ।
रात अंधेरी सन्नाटे में सूनी सड़क किनारे
इसके ठंडे गोश्त में देखो किसने पंजा मारा ।
ये बच्चा भी बच्चा ही है सुनो देश के लोगो
सोचो जरा बताओ तो क्या यही भविष्य हमारा ।
— मनोज कुमार झा
भोपाल ( मध्यप़देश )