पृष्ठ १० — ग़ज़ल ( डा रूप चन्द़ शास्त्री मयंक )

मर गयी है आदमीयत
भर गई शैतानियत ।
देखकर धोखाधड़ी को
डर गयी मासूमियत ।
प्यार है केवल दिखावा
बढ़ गयी रूमानियत ।
आदमी में आजकल के
घट गयी ईमानियत ।
हो गया ईमान पैसा
खो गई इन्सानियत ।
कैद है दैरो-हरम में
रामियत-रहमानियत ।
ढोंग है अब धर्म का
और पाप की है सल्तनत ।
हो गया माहौल गन्दा
वक्त की है कैफियत ।
“रूप” से सब आँकते
माशूक की अब हैसियत ।
— डा रूप चन्द़ शास्त्री मयंक
खटीमा ( उत्तरा खण्ड )