हर पंछी पर तोल रहा है
मन उड़ने को डोल रहा है,
हर पंछी पर तोल रहा है ।
रंग मंच का परदा कोई –
धीरे धीरे खोल रहा है ।
पहले जन्म जहाँ लेता था,
वृक्ष वहीँ छाया देता था ।
काम सभी के आता था वो,
स्वयं नहीं फल खाता था वो ।
अब ना वो इतिहास, न वो
पहले जैसा भूगोल रहा है ।
हर पंछी पर तोल रहा है…………..।
विज्ञापन का भ्रम फैला कर
पहले हमसे धन ले जाते ।
फिर उस धन का ‘पैकेज’ देकर
प्रतिभाओं से देश छुड़ाते ।
बेच रहा ख़ुद को वो जो,
अपने घर में अनमोल रहा है ।
हर पंछी पर तोल रहा है……….।
तुमने पैसा बहुत कमाया,
पर सोचो क्या लेकर आये ?
जब भी लौटे,सबकुछ खो कर
किसी तरह से जान बचाए ।
तालिबान हो या ब्रिटेन ,
बस यही हकीक़त खोल रहा है ।
हर पंछी पर तोल रहा है………. ।
जाने मुझको क्यूँ लगता है ,
जल्दी ही वो दिन आएगा ।
अपने घर के दाने – पानी,
पर हर कोई इतराएगा ।
आने वाला कल शायद –
मेरे भीतर से बोल रहा है ।
हर पंछी पर तोल रहा है……… ।
— राजेश राज
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