पृष्ठ ५ – … सम्पादकीय

आज अनेक कवि कविता के स्थान पर फैन्टेसी लिख रहे हैं या अन्योक्ति लिख रहे

हैं या वक़ से वक़ वक़ोक्ति लिख रहे हैं । कविता को कला बनाने की होड़ लगी हुई है ।
ठीक है कि कविता को कलात्मक भी होना चाहिए पर उस से पहले वह कविता तो हो ।
  कविता के कविता होने का ंआग़ह ही सहज कविता का ंंआग़ह है । यह कैसे सम्भव
हो , इस पर स्वयम् कवियों को बिचार करना है । कविता के सारे परम्परागत लज्ञण
छोड़़ दिये गए । अनेक लोगों ने कविता नाम की प्यारी विधा को शब्दसंग़ह मात्र
बना कर छोड़ दिया है , जिस में घुस कर अर्थ का मोती निकाल लाना किसी विशेषज्ञ
के ही बस का काम होगा । तो आज की कविता का पाठक होने के लिए कविता का विशेषज्ञ
होना पड़ेगा ।
  आज की कविता और गद्य में लगभग कोई अन्तर नहीं रह गया है । कोई भी
गद्यकार निश्चय कर ले कि वह भी कविता लिखेगा , तो उसे कोई नहीं रोक सकता ।
बस उस के पीछे किसी आलोचक , किसी सम्पादक   किसी प़काशन या संस्थान
का वरद हस्त होना चाहिए । ऊँची कुर्सी पर बैठा गद्यकार आसानी से हिन्दी का
कवि बन जाता है ।
  सहज कविता के पिछले अंकों में सहजकविता विषयक अनेक प़श्नों पर विचार
किया गया है । पाठकों से निवेदन है कि वे पिछले अंक भी देखें ।
-सुधेश