बादल को धमकाया जाए
फिर पानी बरसाया जाए ।
पिंजरे से भारी है पंछी
अब तो इसे उड़ाया जाए ।
बहुत झुका ली गर्दन अब तो
मिल कर हाथ उठाया जाए ।
सच की जब दरकार पड़े तो
अपना नाम गिनाया जाए ।
जब हर चीज़ ठिकाने सिर हो
हम को भी पहुँचाया जाए ।
शीशमहल में व्यथा सुनाने
पत्थर को भिजवाया जाए ।
फलता है जब पाप तो प्यारे
फिर क्यों पुण्य कमाया जाए ।
एक सवाये सुर को साधो
कैसे पूरा गाया जाए ।
— सलीम खां फ़रीद
हसामपुर , सीकर
( राजस्थान )