५
…..
सरलता पाठक सापेक्ष भी है ा शिक्षित व्यक्ति के लिए जो भाषा बोधगम्य होती है , वह
अशिक्षित व्यक्ति के लिए वैसी नहीं होती । इस का मतलब यह हुआ कि जो भाषा किसी की
समझ में आसानी से आजाए , वह उस के लिए सरल है । तो भाषा की सरलता का सम्बन्ध
उस की बोधगम्यता से भी है । तो सरलता केवल भाषा के प़योग तक सीमित नहीं है , वह
पाठकों के बौद्धिक धरातल , उन के शैक्षिक स्तर ,और सांस्कृतिक सुरुचि के धरातल से
भी सम्बन्धित है । इस का आशय यह नहीं है कि शिक्षित व्यक्ति ही उच्च सांस्कृतिक
धरातल पर होता है ,( यद्यपि शिक्षित व्यक्ति से इस की अधिक अपेक्षा रहती है ) और
अनपढ़ ग़ामीण में कोई सांस्कृतिक चेतना या सुरुचि नहीं होती । शिक्षित व्यक्ति भी
अन्धविश्वासी , अतार्किक ,और जड़मति हो सकता है और अशिक्षित व्यक्ति सत्संगति
और नैसर्गिक प़तिभा के कारण उदार और प़गतिशील विचारों वाला हो सकता है ।
पर कविता की सरलता भाषागत अधिक होती है और कविता की सहजता सहज भावों
और प़ेरणाओं से अधिक सम्बन्धित है , यद्यपि कविता भाषा में ही लिखी जाती है और उस
के बिना कविता का कोई अस्तित्व ही मूर्त्त नहीं होता ।
कविता की सहजता को सपाटबयानी से भी जोड़ा जाता है । कहा जाता है कि सपाट
बयानी सरलता है और उसी से कविता में सहजता आती है । पर सपाटबयानी क्या है ?
वर्णनात्मक अभिधात्मक कथन ही सपाटकथन अथवा सपाटबयानी है । शब्द की लक्षणा
और व्यंजना शक्तियों पर मुग्ध आलोचकों के बीच अभिधा मानो कोई गर्हित वस्तु है ।
सपाटबयानी में भी अभिधा की अधिक सक्रियता होती है , तो सपाटबयानी को भी
अनेक कवितालोचक कविता का एक दोष मानते हैं ।
सहज कविता के सन्दर्भ में मैं सपाटबयानी को कोई गर्हित वस्तु नहीं मानता , बल्कि
उपयोगी साधन मानता हूँ । सपाटबयानी स्वभावोक्ति के निकट है । इस लिए वह
सहज कविता की उपस्कारक है ।
– डा सुधेश