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मुक्तक
आसमां अपने से नीचा लग रहा है
आलमे जन्नत भी झूठा लग रहा है
आप जो हैं साथ तो क्या और बोलें
प़ेम जैसा शब्द छोटा लग रहा है ।
–– जय कौशल
असिस्टेन्ट प़ोफेसर , हिन्दी विभाग ,
केन्द्रीय विश्वविद्यालय , अगरतला ( त्रिपुरा )
खोखले जनतन्त्र नारे क्यों लिखूँ ?
खोखले हैं शब्द सारे क्यों लिखूँ ?
शब्द ही बस शब्द गुंंजित हैं यहाँ
खो गये हैं अर्थ सारे क्यों लिखूँ?
दिल अगर बेचैन हो क्या कीजिए ?
पास श्रोता भी न हो क्या कीजिए ?
कभी कोई मुझ को पढ़े ना पढ़े
मगर लिखने के सिवा क्या कीजिए !
किस ने कहा कि तुम सिर्फ कविता लिखो
पुरुष को राम नारि को सीता लिखो
महाभारत के भगोड़े बने तो क्यों
कृष्ण की सामर्थ्य बिना गीता लिखे ?
–– सुधेश