पृष्ठ १६ – कविताएँ

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  मुक्तक 

आसमां अपने से नीचा लग रहा है
आलमे जन्नत भी झूठा लग रहा है
आप जो हैं साथ तो क्या और बोलें
प़ेम जैसा शब्द छोटा लग रहा है ।
– जय कौशल
असिस्टेन्ट प़ोफेसर , हिन्दी विभाग ,
केन्द्रीय विश्वविद्यालय , अगरतला  ( त्रिपुरा )
            खोखले  जनतन्त्र  नारे क्यों लिखूँ ?
             खोखले हैं शब्द  सारे क्यों  लिखूँ ?
             शब्द ही बस शब्द गुंंजित हैं यहाँ
             खो गये हैं अर्थ सारे  क्यों लिखूँ?
दिल अगर बेचैन हो क्या कीजिए ?
पास श्रोता भी न हो क्या कीजिए  ?
कभी कोई मुझ को पढ़े ना पढ़े
मगर लिखने के सिवा क्या कीजिए !
             किस ने कहा कि तुम सिर्फ कविता लिखो
             पुरुष को राम नारि को सीता लिखो
             महाभारत के भगोड़े बने तो क्यों
              कृष्ण की सामर्थ्य बिना  गीता लिखे ?
– सुधेश