पृष्ठ १२ – कविताएँ

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                             शब्द 
कभी कभी शब्द
बन जाते हैं
सामन्ती जमींदार
दिल और दिमाग से द
बेहिसाब करवाते हैं
बेगार
चटकने लगती हैं नसें
पर नहीं बनती
कविता..
और कभी-कभी
थोड़ा-सी मजदूरी पर भी
खूब हो जाता है
मुनाफ़ा
काश कि शब्द
छोड़ देते अपनी आदत
और मैं अपना लालच
फ़िर हर बार बनती
खूबसूरत कविता..।
जय कौशल 
प़ाध्यापक , हिन्दी विभाग , केन्द्रीय विश्वविद्यालय
अगरतला ( त्रिपुरा )  ७९९०२२