पृष्ठ १५ – कविताएँ

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        मारिशस 

ठण्ड ठण्डी नम हवा
नथुनों का स्पर्श करती है ‘
तो रोमांचित हो उठता हूँ
लगता है
इस में किसी के पसीने की
ख़ुश्बू समायी है ।
      धरती फोड़ कर
      वज़ हस्तों से खोद फेंके गये
      ख़ूनचूसक भारी भरकम
      काले राक्षसी पत्थरों के
      अम्बारों के किनारे किनारे
      लहलहाते गन्ने और मक्का के
      पौधों की हरियाली में
      झाँकते दिखाई देते हैं
      आँसू , पसीना और ख़ून
       किस के?
       उन धरती पुत्र मानवों के
       जो भारत माँ की गोद से घसीट
       चाबुकों की मार से बेदम
        नंगे भूखे  बीमार
       पटक दिये गये थे
        सात सागर पार
        डेढ़ सौ वर्ष पूर्व ।
— रमा नाथ त्रिपाठी 
(  दिल्ली विश्व विद्यालय के सेवानिवृत्त प़ोफ़ेसर )
२६ वैशाली , पीतमपुरा , दिल्ली , ११००३४