कविताएँ ११
खोया हुआ खत
कागज का एक टुकड़ा
दिया तुम ने
सभी के बीच
सभी से छिपाते हुए;
शायद! उसमें लिखा था
वर्षों की जुदाई का दर्द
या आगामी सन्देश ।
मैंने सिर्फ संबोधन
”जीवनसाथी” ही पढ़ा था, कि
मेरी नींद टूट गई ।
उसके बाद मैंने कोशिश की
उस नींद में जाकर
उस स्वप्न को ढ़ूढ़ने की
उस खत को पढ़ने की;
मगर न तो नींद मिली
नहीं वह स्वप्न
और नहीं
वह खोया हुआ खत ।
-सर्वेश कुमार मिश्र