इस अंक पर समग़त: या पसन्द की गई रचना या रचनाओं पर अपना अभिमत या राय लिखें तो पत्रिका को बेहतर
बनाने में मदद मिलेगी ।
आप कोई सुझाव देना चाहें तो अवश्य दें । आप का स्वागत है ।
अपना अभिमत या सुझाव हिन्दी में टाइप करें । यदि हिन्दी में टाइप करने की सुविधा नहीं है तो रोमन लिपि में
हिन्दी लिख सकते हैं ।
— सम्पादक
पत्रिका का प्रथम अंक आकर्षक है… आगामी अंक उत्तरोत्तर अधिक आकर्षक होंगे इसके लिए मेरी शुभकामनाएँ…
यदि छन्दबद्ध कविताओं को भी स्थान दें तो पत्रिका सरस होगी ऐसी अपनी राय है…
वयोवृद्ध डॉ. रमानाथ त्रिपाठी की, इस वार्धक्य में भी, रचनाशीलता देख सुखद आश्चर्य होता है…..
आज की अधिकांश हिन्दी कविता लोकप्रिय नहीं है। कुछ शिक्षित बुद्धिजीवी ही उसे पढ़ते और
समझते हैं—Correct.
रंजन ज़ैदी जी , आप की बात सही है । आज की कविता की अधिक गद्यात्मकता उस की लोकप्रियता में बाधक है । पुराने अंकों पर भी आप की राय की प्रतीक्षा करूँगा ।
प्रमोद वाजपेयी जी , आप की प़तिक़िया और सुझाव के लिए धन्यवाद । कृपया दूसरे अंक और पुराने अंकों पर भी अपनी राय लिखें । आप का स्वागत है ।